दीपावली के दिन को लेकर कुछ मान्यताएं हैं. इनमें से एक ये भी है कि इस दिन अगर आपको आमतौर पर दीवारों पर चिपकी रहने वाली छिपकली दिख जाए, तो ये सौभाग्य का संकेत माना जाता है. दिलचस्प तो ये है कि दीपावली से कुछ दिन पहले से ही आपको छिपकलियां दिखनी बंद हो जाती हैं.
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हमारे यहां हर तीज-त्योहार के लिए कुछ कहावतें और मान्यताएं होती हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हम सुनते और कहते आए हैं. ऐसी ही एक मान्यता ये भी है कि दिवाली के दिन कुछ खास जानवर दिखते हैं, तो सौभाग्य आपके द्वार पर दस्तक देता है. इनमें से एक जीव है छिपकली, जिसे सालभर तो हम देखना नहीं चाहते लेकिन इस दिन उसे ढूंढते रहते हैं.
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आमतौर पर दीवारों पर चिपकी रहने वाली छिपकली दिख जाए, तो ये सौभाग्य का संकेत माना जाता है. दिलचस्प तो ये है कि दीपावली से कुछ दिन पहले से ही आपको छिपकलियां दिखनी बंद हो जाती हैं. आखिर ये चली कहां जाती है?
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पहली वजह तो ये होती है कि हमारे घर की गहराई से साफ-सफाई दीपावली से पहले हो जाती है. इस दौरान घर में रहने वाले सारे कीड़े-मकोड़े लगभग खत्म हो जाते हैं. ऐसे में छिपकलियां भी नहीं दिखने लगती हैं.
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अगला वैज्ञानिक कारण ये है कि सभी उभयचर और सरीसृप प्राणी अधिक गर्मी और सर्दी को सहन नहीं कर पाते हैं. ऐसे में वे धरती में बने बिल या दीवारों की दरारों में घुसकर अपने शरीर की उपापचय क्रियाओं को मंद कर लेते हैं. ऐसे में उनकी एनर्जी खर्च नहीं होती और भोजन की ज्यादा ज़रूरत नहीं पड़ती.
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चूंकि दीपावली से पहले ही ठंड दस्तक दे देती है, ऐसे में ठंडे खून वाली छिपकलियां इस मौसम में पेड़ की छालों, चट्टानों के नीचे या किसी भी दरार में हाइबरनेट करती हैं और बाहर निकलना बंद कर देती हैं. छिपकलियां एक्टोथर्मिक होती हैं, यानि उनका खून ठंडा होता है, जिसकी वजह से उनके पास आंतरिक हीटिंग की क्षमता नहीं होती है.
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यही कारण है कि ठंड के महीनों यानि अक्टूबर की शुरुआत से लेकर फरवरी-मार्च तक आपको घर में छिपकलियां न के बराबर ही दिखेंगी. जैसे ही मौसम गर्म होने लगता है, वे वापस घर की दीवारों और कई बार फर्श पर भी टहलती हुई दिखाई देने लगती हैं.