*अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर RPF IG Bilaspur मुनव्वर खुर्शीद का खास लेख*

लेखक – मुनव्वर खुर्शीद
महानिरीक्षक, रे,सु.ब.
द.पू.म. रेलवे, बिलासपुर (छग़)
परिचय : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (IWD) हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है। भारत में इसकी जड़ें स्वतंत्रता संग्राम और प्रारंभिक नारीवादी आंदोलनों से जुड़ी हैं, जिनका नेतृत्व सरोजिनी नायडू और कमलादेवी चट्टोपाध्याय जैसी महान विभूतियों ने किया था। स्वतंत्रता के बाद, संविधान ने महिलाओं को समान अधिकार प्रदान किए, लेकिन लिंग भेदभाव, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल की चुनौतियाँ, और पारंपरिक पूर्वाग्रह जैसी सामाजिक समस्याएँ बनी रहीं। 1975 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा IWD को मान्यता मिलने के बाद भारत में इसका महत्व बढ़ा। यह दिन महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने और उनके अधिकारों की वकालत करने का मंच बन गया। हालाँकि, लिंग-आधारित हिंसा, असमान वेतन, कार्यबल में कम भागीदारी, और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच जैसी समस्याएँ अब भी बनी हुई हैं।
महत्व : भारत में महिला दिवस उन अग्रणी महिलाओं का सम्मान करने का अवसर है, जिन्होंने अपने क्षेत्रों में बाधाओं को तोड़ा। यह ग्रामीण, दलित और आदिवासी समुदायों की महिलाओं की चुनौतियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का भी माध्यम है। यह दिन शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और कानूनी सुधारों को बढ़ावा देने के साथ-साथ पितृसत्तात्मक मान्यताओं को चुनौती देता है। अभियान, संगोष्ठियाँ और सोशल मीडिया ट्रेंड जैसे #BreakTheBias लैंगिक समानता की इस पुकार को और तेज़ करते हैं।
महिलाओं के सामने चुनौतियाँ

  1. लैंगिक वेतन अंतर: महिलाएँ समान कार्य के लिए पुरुषों की तुलना में 20-30% कम वेतन पाती हैं।
  2. शिक्षा तक सीमित पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और सामाजिक मान्यताओं के कारण कई लड़कियों को शिक्षा से वंचित कर दिया जाता है।
  3. नेतृत्व में कम प्रतिनिधित्व: भारतीय संसद में केवल 14% सांसद महिलाएँ हैं।
  4. स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुँच: महिलाएँ अक्सर प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में बाधाओं का सामना करती हैं।
  5. डिजिटल विभाजन: ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की प्रौद्योगिकी और इंटरनेट तक पहुँच कम होती है।
    घर के बाहर महिलाओं के सामने समस्याएँ
  6. सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न और हिंसा: महिलाएँ अक्सर छेड़खानी, कैट-कॉलिंग और शारीरिक हमले का सामना करती हैं।
  7. सार्वजनिक परिवहन में सुरक्षा संबंधी चिंताएं: बसों और ट्रेनों में महिलाओं को असुरक्षा महसूस होती है।
  8. कार्यस्थल पर भेदभाव: महिलाएँ अक्सर लैंगिक पूर्वाग्रह और यौन उत्पीड़न का सामना करती हैं।
  9. स्वच्छता तक पहुँच की कमी: साफ-सुथरे सार्वजनिक शौचालयों की कमी महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
  10. सांस्कृतिक और सामाजिक प्रतिबंध: महिलाओं की यात्रा और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं।
  11. आर्थिक शोषण: असंगठित क्षेत्रों में महिलाएँ कम वेतन और लंबे कार्य घंटे का सामना करती हैं।
  12. साइबर उत्पीड़न: महिलाएँ ऑनलाइन उत्पीड़न और साइबर बुलिंग का शिकार होती हैं।
  13. शिक्षा और खेल में भेदभाव: लड़कियों को अक्सर उच्च शिक्षा और खेलों में भाग लेने से हतोत्साहित किया जाता है।
    महिलाओं के लिए ट्रेन यात्रा की चुनौतियाँ
  14. सुरक्षा संबंधी चिंताएं: महिलाएँ अक्सर उत्पीड़न और चोरी का शिकार होती हैं।
  15. अपर्याप्त सुविधाएं: ट्रेनों में गंदे शौचालय और महिला डिब्बों की कमी एक बड़ी समस्या है।
  16. भीड़भाड़ और गोपनीयता की कमी: जनरल डिब्बों में यात्रा करने वाली महिलाओं को असुविधा होती है।
  17. लंबी दूरी की यात्रा में चुनौतियाँ: रात में यात्रा करने वाली महिलाओं को असुरक्षा महसूस होती है।
  18. आपातकालीन सहायता में देरी: उत्पीड़न या चिकित्सा संबंधी आपात स्थितियों में प्रतिक्रिया अक्सर धीमी होती है।
    महिला यात्रियों के लिए आरपीएफ की पहल
  19. मेरी सहेली पहल: अकेली यात्रा करने वाली महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  20. शक्ति, दुर्गा और देवी स्क्वाड: महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए विशेष टीमें।
  21. ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते: गुमशुदा और तस्करी के शिकार बच्चों को बचाना।
  22. निर्भया फंड परियोजनाएं: CCTV कैमरे और पैनिक बटन लगाना।
  23. 139 रेलवे हेल्पलाइन: 24×7 आपातकालीन हेल्पलाइन।
  24. अक्षिता सेफ बबल: महिलाओं के लिए सुरक्षित प्रतीक्षा क्षेत्र।
  25. ऑपरेशन मातृ शक्ति: गर्भवती महिलाओं की सहायता करना। 2024 में 174 प्रसव में सहायता की गई।
  26. ऑपरेशन जीवन रक्षा: जनवरी 2024 में 3,384 यात्रियों की जान बचाई गई।
  27. ऑपरेशन डिग्निटी: 2024 में 4,047 लोगों को बचाया गया, जिनमें 1,607 महिलाएँ शामिल थीं।
    निष्कर्ष
    अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भारत में महिलाओं की प्रगति और चुनौतियों को उजागर करने का एक महत्वपूर्ण मंच है। आरपीएफ जैसी पहलों ने महिलाओं की सुरक्षा में सुधार किया है, लेकिन लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। शिक्षा, कानूनी सुधार और सामाजिक जागरूकता के माध्यम से ही महिलाओं को सही मायने में सशक्त बनाया जा सकता है।
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