देश/विदेश |News T20: प्राधानमंत्री मोदी के लक्षद्वीप दौरे को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले मालदीप सरकार के तीनों मंत्रियों को सस्पेंड कर दिया गया है। इसके बाद भी भारतीयों का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा।

इस बीच डैमेज कंट्रोल की कोशिश करते हुए वहां की सरकार लगातार दोनों देशों की दोस्ती का हवाला दे रही है. ये सब इसलिए भी हो रहा है क्योंकि मालदीव की इकनॉमी काफी हद तक इंडियन टूरिस्ट्स पर निर्भर है. हर साल वहां लाखों भारतीय छुट्टियां मनाने जाते हैं.

किस हद तक है कट्टरपंथ

अब लक्षद्वीप इसे रिप्लेस कर सकता है. वैसे सुन्नी-बहुत मालदीव के बारे में अमेरिका तक कह चुका कि ये हद से ज्यादा चरमपंथी देश है, जिसके लोगों का आतंकवादियों से लिए नरम रूख रहा. काफी हद तक ये सही भी है. एक समय पर बौद्ध आबादी वाला ये देश तेजी से मुस्लिम आबादी में बदला. अब हालत ये है कि यहां नॉन-मुस्लिमों को नागरिकता तक नहीं मिलती.

इतिहासकार मानते हैं कि मालदीव के शासक भारत के चोल साम्राज्य से थे. लेकिन तब कैसे ये देश पूरी तरह से इस्लामिक हो गया? भारतीय शासक मालदीव तक कैसे पहुंचे, इस बारे में अलग-अलग मत हैं.

इतिहासकार क्या मानते हैं

ज्यादातर स्कॉलर्स का मानना है कि चोल साम्राज्य से भी पहले वहां कलिंग राजा ब्रह्मदित्य का शासन था. ये 9वीं सदी की बात है. इसके बाद राजसी शादियों के जरिए वहां तक चोल वंश पहुंच गया. 11वीं सदी में मालदीप पर महाबर्णा अदितेय का शासन रहा, जिसके प्रमाण वहां आज भी शिलालेखों पर मिलते हैं.

आखिरी बौद्ध राजा ने भी इस्लाम अपना लिया

इससे पहले से ही बौद्ध धर्म भी वहां फल-फूल रहा था. ईसा पूर्व तीसरी सदी में वहां की ज्यादातर आबादी बौद्ध थी. हिंदू राजाओं के आने के बाद दोनों ही धर्म एक साथ बढ़ते रहे. अब भी वहां के 50 से ज्यादा द्वीपों पर बौद्ध स्तूप मिलते हैं. लेकिन ज्यादातर या तो नष्ट हो चुके, या तोड़े जा चुके. आखिरी बौद्ध राजा धोवेमी ने साल 1153 में इस्लाम अपना लिया और उनका नाम पड़ा- मुहम्मद इब्न अब्दुल्ला.

लेकिन ये हुआ कैसे

असल में इस द्वीप देश में लंबे समय से अरब व्यापारियों का आना-जाना था. शुरुआत में बात व्यापार तक रही, लेकिन धीरे-धीरे वे अपने धर्म का प्रचार करने लगे. राजा के धर्म परिवर्तन के बाद लगभग सारी आबादी ने मुस्लिम धर्म अपना लिया और देश का इस्लामीकरण हो गया. इस बात का जिक्र ‘नोट ऑन द अर्ली हिस्ट्री ऑफ मालदीव्स’ नाम की किताब में मिलता है.

इस तरह का है धार्मिक माहौल

हिंद महासागर में स्थित ये द्वीप देश अब 98 प्रतिशत मुस्लिम है. बाकी 2 प्रतिशत अन्य धर्म हैं, लेकिन उन्हें अपने धार्मिक प्रतीकों को मानने या पब्लिक में त्योहार मनाने की छूट नहीं. यहां तक कि अगर किसी को मालदीव की नागरिकता चाहिए तो उसे मुस्लिम, वो भी सुन्नी मुस्लिम होना पड़ता है. मिनिस्ट्री ऑफ इस्लामिक अफेयर्स (MIA) यहां धार्मिक मामलों पर नियंत्रण करती है.

गैर-मुसलमान सार्वजनिक तौर पर नहीं कर सकते धार्मिक प्रैक्टिस

वैसे तो ये पर्यटन का देश है, लेकिन टूरिस्ट्स को भी यहां अपने धर्म की प्रैक्टिस पर मनाही है. वे सार्वजनिक जगहों पर पूजा-पाठ नहीं कर सकते. अमेरिकी रिपोर्ट ने भी लगाई मुहर यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट ने साल 2022 में मालदीव में रिलीजियस फ्रीडम पर एक रिपोर्ट जारी की. इसमें बताया गया कि वहां के द्वीप पर भगवान की मूर्तियां स्थापित करने के जुर्म में तीन भारतीय पर्यटकों को गिरफ्तार कर लिया गया था. देश में लगभग 29 हजार भारतीय रह रहे हैं, लेकिन या तो वे इस्लाम अपना चुके, या फिर अपना आधिकारिक धर्म छिपाते हैं.

धर्म बदलने पर कड़ी सजा

कट्टरपंथ इतना तगड़ा है कि धर्म परिवर्तन की भी इजाजत नहीं. कोई भी मुस्लिम नागरिक अपनी मर्जी से दूसरा धर्म नहीं अपना सकता. मिनिस्ट्री ऑफ इस्लामिक अफेयर्स के तहत इसपर कड़ी सजा मिल सकती है. यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की रिपोर्ट यहां तक कहती है कि धर्म परिवर्तन पर शरिया कानून के तहत मौत की सजा भी मिलती है, हालांकि मालदीव सरकार ने कभी इसपर कोई सीधा बयान नहीं दिया.

क्या है ISIS से संबंध

लगभग 12 सौ द्वीपों से बने इस देश के बारे में माना जाता है कि कि यहां पर कैपिटा आबादी पर सबसे ज्यादा युवा इस्लामिक स्टेट के लिए लड़ने गए.

यूएस डिपार्टमेंट ऑफ ट्रेजरी के मुताबिक साल 2014 से लेकर 2018 की शुरुआत तक, यहां से ढाई सौ से ज्यादा लोग ISIS में भर्ती के लिए सीरिया चले गए. ये जनसंख्या के हिसाब से दुनिया में सबसे ज्यादा है. इनमें से काफी लोग मारे गए, जबकि ज्यादातर मालदीवियन महिलाएं नॉर्थईस्ट सीरिया के कैंपों में हैं. खुद मालदीव की सरकार ने उन्हें वापस लाने के लिए नेशनल रीइंटीग्रेशन सेंटर बनाया हुआ है, जो दूसरों देशों के साथ संपर्क में है.

अफगानिस्तान में चरमपंथियों को सपोर्ट

अमेरिकी ट्रेजरी डिपोर्टमेंट के मुताबिक, मालदीव का अड्डू शहर इस्लामिक चरमपंथियों का गढ़ बना हुआ है. ये शहर साल 2018 के बाद एक्टिव हुआ, और लगातार ISIS की विचारधारा पर काम करने लगा. यहां कई एक्सट्रीमिस्ट गुट काम करते हैं, जिनका सीधा सपोर्ट ISIS-K (अफगानिस्तान स्थित ISIS शाखा) को है. इस लीडर समेत बाकी गुट इस्लामिक स्टेट तक IED और लड़ाके पहुंचाने का काम करते हैं. इसके अलावा युवाओं के दिमाग में जहर भरकर उन्हें भड़काना भी इनका काम है. काफी लोग अल-कायदा को भी सपोर्ट करते हैं।

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