भिलाई [न्यूज़ टी 20] केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तेलंगाना के कामारेड्डी के जिलाधिकारी जितेश पाटिल की खिंचाई की है। दरअसल, वह इस बात का जवाब नहीं दे सके कि उचित मूल्य की दुकानों के जरिए सप्लाई किए जाने वाले चावल में केंद्र और राज्य का हिस्सा कितना है।

भाजपा की लोकसभा प्रवास योजना के तहत जहीराबाद संसदीय क्षेत्र में विभिन्न कार्यक्रमों में सीतारमण ने शुक्रवार को हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने जिलाधिकारी से यह भी पूछा कि बिरकुर में उचित मूल्य की दुकान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर क्यों गायब है।

सीतारमण ने जिलाधिकारी से पूछा, ‘जो चावल खुले बाजार में 35 रुपये में बिक रहा है। वह यहां एक रुपये में लोगों को बांटा जा रहा है। इसमें राज्य सरकार का कितना हिस्सा है?’

वित्त मंत्री ने कहा कि केंद्र साजो-सामान और भंडारण सहित सभी लागत का वहन कर रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की दुकानों में चावल की आपूर्ति की जा रही है। साथ ही यह जवाब पाने की कोशिश हो रही है कि मुफ्त चावल लोगों तक पहुंच रहा है या नहीं।

PDS के जरिए चावल वितरण में किसका कितना हिस्सा –

सीतारमण ने कहा कि केंद्र लगभग 30 रुपये देता है और राज्य सरकार चार रुपये देती है, जबकि लाभार्थियों से एक रुपया वसूला जाता है।

मार्च-अप्रैल 2020 से राज्य सरकार और लाभार्थियों के किसी भी योगदान के बिना केंद्र 30 रुपये से 35 रुपये की कीमत पर मुफ्त चावल उपलब्ध करा रहा है। जब अधिकारी सवाल का जवाब नहीं दे सके, तो केंद्रीय मंत्री ने उन्हें अगले 30 मिनट में जवाब देने को कहा।

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टी हरीश राव का पलटवार-

इस बीच, तेलंगाना के स्वास्थ्य मंत्री टी हरीश राव ने कहा कि केंद्रीय मंत्री की ओर से राशन की दुकान में प्रधानमंत्री की तस्वीर रखने के लिए कहना अनुचित है। उनके अनुसार, केंद्र एनएफएसए के तहत केवल 50 से 55 प्रतिशत कार्डधारकों को प्रति माह तीन रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से 10 किलोग्राम चावल की आपूर्ति करता है।

शेष 45-50 प्रतिशत कार्डधारकों के लिए तेलंगाना सरकार अपने खर्च से आपूर्ति करती है। राव ने कहा, ‘यह हास्यास्पद है। वह जो बात कर रही हैं उससे प्रधानमंत्री का दर्जा गिरता है।

वह ऐसे बात कर रही थीं जैसे सारा चावल (जो मुफ्त दिया जाता है) उनके (केंद्र) की ओर से ही दिया जा रहा है। साथ ही राशन की दुकान में प्रधानमंत्री की तस्वीर रखने के लिए कहना सही नहीं है।’

 

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