देश|News T20: भारत ने अपने मानव रहित हवाई वाहन बनाने की अपनी सबसे बड़ी परियोजना को रोक दिया है. भारत को ये कदम इसलिए उठाना पड़ा है क्योंकि यह ड्रोन पूरी तरह सफल नहीं हो पा रहा था और सैन्य जरूरतों को पूरा करने में भी पूरी तरह सफल नहीं हो पाया.

तपस ड्रोन को पहली बार फरवरी 2011 में 1,650 करोड़ रुपये की प्रारंभिक लागत पर मंजूरी दी गई थी, लेकिन बाद में स्थिति का जायजा लेते हुए डीआरडीओ ने इस प्रोजेक्ट को “मिशन-मोड” पर छोड़कर बंद कर दिया है.

लागत बढ़कर 1786 करोड़ रुपए हो गई

बता दें कि तपस ड्रोन ऊंचाई की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रही है ऐसा सरकारी सूत्रों का कहना है. साथ ही यह भी जानकारी दी गई है कि इस तपस परियोजना के लिए प्रारंभिक समय सीमा अगस्त 2016 तय की गई थी लेकिन, इसके पूरे वजन में करीब 2,850 किलोग्राम तक की बढ़ोत्तरी देखी गई. साथ ही कई अन्य परेशानियां भी सामने आई थी जिसके कारण कई बार समय सीमा बढ़ गई और लागत भी बढ़कर 1786 करोड़ रुपए हो गई.

तपस-201 ड्रोन ने लगभग 200 उड़ानें भरीं

जानकारी हो कि तपस-201 ड्रोन ने लगभग 200 उड़ानें भरीं, जिसमें कम-से-कम दो ड्रोन दुर्घटना का शिकार भी हो गए, लेकिन प्राइमरी सेवाओं की PSQR को पूरा नहीं कर सका जो कि इसके लिए आवश्यक थी और पैरामीटर पर भी खड़ा नहीं उतरी. एक सूत्र ने इस मामले में काजा कि तपस जिस ऊंचाई पर उड़ना चाहिए और उसकी परिचालन एबिलिटी के संदर्भ में जरूरी पीएसक्यूआर को पूरा करना चाहिए वह नहीं कर सकी. एक सूत्र ने कहा, 28,000 फीट की ऊंचाई पर इसकी उड़ान क्षमता केवल 18 घंटे है. साथ ही उन्होंने बताया कि इस विमान को कम से कम 24 घंटे के लिए 30,000 फीट तक की ऊंचाई पर काम करने में सक्षम होना चाहिए.

क्या होनी चाहिए क्षमता?

सूत्रों की मानें तो डीआरडीओ अब ऐसे यूएवी को फिर से डिजाइन और पुनर्विकसित करने पर विचार करेगा. बता दें कि डीआरडीओ ने इस ड्रोन के लिए क्या प्लान किया था. तपस ड्रोन को 30 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने जैसा बनाना था. साथ ही इसे इलेक्ट्रो ऑप्टिकल और सिंथेटिक एपर्चर रडार पेलोड के साथ 250 किलोमीटर की रेंज में 24 घंटे उड़ान भरने की क्षमता की जरूरत थी. यह ड्रोन अधिकतर 350 किलोग्राम का पेलोड ले जा सकता है. यह ड्रोन पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है. तपस का पूरा नाम ‘टेक्टिकल एयरबोर्न प्लेटफॉर्म फॉर एरियल सर्विलांस’ है.

 

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