देश में सभी लोगों तक नलों के जरिये घरों में साफ पानी पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से कोशिश की जा रही है. 1 नवंबर से 5 नवंबर तक इंडिया वॉटर वीक भी मनाया जा रहा है. लेकिन इस बीच एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. इसमें दावा किया गया है कि देश में सिर्फ 2 फीसदी ही लोगों तक ही नलों के जरिये पर पीने का साफ पानी पहुंच रहा है. इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि करीब 65 फीसदी लोग घरों में पानी को साफ करने के लिए फिल्टर तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं.

साफ पानी की पहुंच को लेकर कम्युनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकलसर्कल्स ने बुधवार को सर्वे रिपोर्ट जारी की है. इसमें बताया गया है कि जब लोगों से पूछा गया कि उनके घरों में नलों के जरिये आने वाले पानी की क्वालिटी को वे कितना ठीक मानते हैं तो 5 फीसदी लोगों ने इसे बेहद खराब कहा है. साथ ही 15 फीसदी लोगों ने इसे खराब कहा है. जबकि 5 फीसदी लोगों ने कहा है कि उनके घर तक नलों के जरिये पानी नहीं आता.

34 फीसदी लोग वॉटर प्यूरिफायर कर रहे इस्तेमाल

सर्वे में जब इन लोगों से पूछा गया कि वे घरों में पीने, खाना पकाने और अन्य कामों के लिए पानी साफ करने के लिए क्या करते हैं? तो 34 फीसदी लोगों ने कहा है कि वे इसके लिए वॉटर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करते हैं. 31 फीसदी लोग आरओ सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं. एक फीसदी लोग क्लोरीन से पानी साफ करते हैं. 14 फीसदी लोगों ने पानी को उबालकर इस्तेमाल करने का तरीका बताया है. वहीं 5 फीसदी लोगों ने कहा है कि वे इसके लिए मिट्टी के घड़ों को अपनाते हैं. इन सबके अलावा 7 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो इनमें से किसी भी तकनीक का इस्तेमाल नहीं करते और घरों पर पानी की बोतल मंगाते हैं.

हर साल डायरिया से जाती है 15 लाख बच्चों की जान

लोकलसर्कल्स के फाउंडर सचिन तपारिया का कहना है कि सरकार को लोगों को उनके घरों तक साफ पानी पहुंचाने का इंतजाम करना चाहिए. वही बीएमसी पब्लिक हेल्थ जर्नल ने पिछने साल मई में एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें उसने दावा किया था कि भारत में करीब 3.77 करोड़ लोग हर साल प्रदूषित पानी के कारण होने वाली बीमारियों की चपेट में आते हैं. करीब 15 लाख बच्चे ही हर साल डायरिया की चपेट में आने से मर जाते हैं. वैश्विक संस्था वॉटर डॉट ओआरजी ने दावा किया था कि 6 फीसदी भारतीय जनसंख्या को साफ पानी उपलब्ध नहीं होता है.

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