भिलाई [न्यूज़ टी 20] रूस-यूक्रेन युद्ध  के बाद अमेरिका ने कई कोशिशें की हैं कि भारत (India) रूस (Russia) के खिलाफ सार्वजनिक बयान दे या राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन (Vladimir Putin) की निंदा करे लेकिन भारत ने अभी तक पुरानी दोस्ती निभाई है.

लेकिन अब अमेरिका की तरफ से भारत को बार-बार यह समझाने की कोशिश  हो रही है कि अगर कभी LAC का चीन उल्लंघन करता है तो भारत की मदद के लिए अमेरिका आगे आएगा रूस नहीं.

इस महीने की शुरुआत में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह जब भारत आए थे तो उन्होंने यह बयान देते हुए कहा था कि चीन की तरफ से LAC के उल्लंघन पर रूस भारत की मदद नहीं करेगा बल्कि अमेरिका भारत की मदद करेगा.

NDTV से बात करते हुए वॉशिंगटन डीसी से भारत-अमेरिका मामलों के जानकार (India-US relations & Asia Expert) आत्मन त्रिवेदी भी यही कहा.

हमने उनसे पूछा कि अमेरिका को ऐसा क्यों लगता है कि भारत की ज़रूरत पर रूस मदद के लिए सामने नहीं आएगा? आत्मन त्रिवेदी ने जवाब दिया कि रूस (Russia) के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन

(Vladimir Putin) के शब्दों पर भरोसा नहीं किया जा सकता पिछले कुछ महीनों में कई बार पर यह साबित हुआ है. लेकिन भारत के रूस के साथ पुराने रिश्ते को देखते भी अगर बात की जाए तो भी रूस फिलहाल बेहद बुरे समय में है.

उन्होंने कहा, “रूस पर कई प्रतिबंध हैं. इसके चलते रूस के लिए रणनीतिक तौर पर जरूरी हथियारों को भारत को देना मुश्किल हो जाएगा.”

“चीन का छोटा सहयोगी रूस” 

आत्मन ने आगे बताया कि अमेरिका ज़रूरत पड़ने पर रूस की तरफ से भारत की मदद ना करने का दावा क्यों कर रहा है. उन्होंने कहा, “दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है और पश्चिमी देशों में बहुत से लोगों का मानना है कि

रूस अब सभ्य देशों के समुदाय से बाहर हो गया है. इसका मतलब है कि रूस पहले से कहीं अधिक चीन पर निर्भर हो गया है. रूस अब चीन का छोटा सहयोगी बन गया है.

और इस बढ़ी हुई निर्भरता के मद्देनज़र देखा जाए तो यह संभावना बेहद कम है कि रूस चीन के साथ तनाव के समय में भारत की कोई भी मदद कर पाएगा.

अधिक से अधिक भारत रूस से यही अपेक्षा कर सकता है कि चीन के साथ सीमा पर किसी भी जटिल परिस्थिति में रूस न्यूट्रल रहे. “हाल ही में हुई मोदी-बाइडेन वर्चुअल मीट और 2+2 बैठक के बाद भारत और

अमेरिका ने उन्नत और समग्र रक्षा सहयोग बढ़ाने की बात की है की है. लेकिन अभी तक भारत के लिए रूस बड़ा रक्षा उपकरणों का सहयोगी रहा है. भारत की रूस पर रक्षा उपकरणों को लेकर भारी निर्भरता है, अमेरिका कह रहा है कि

हम आपको रूस के रक्षा उपकरणों के विकल्प देंगे. हमने आत्मन से पूछा कि यह कितना व्यहवारिक है? क्योंकि भारत कह चुका है कि रूसी रक्षा उपकरणों के विकल्प काफी महंगे हैं. क्या आपको लगता है कि

भारत निकट भविष्य रूस से अपनी निर्भरता कम कर सकता है और इसमें अमेरिका कैसे मदद कर सकता है?

अमेरिकी सैन्य उपकरण और भारत  

वैश्विक रणनीतिक मामलों पर सलाह देने वाली कंपनी अल्ब्राइट स्टोनब्रिज ग्रुप (Albright Stonebridge Group) के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट और को-लीड आत्मन कहते हैं, “जहां तक रक्षा उपकरणों कि बात है तो आंकड़े बताते हैं कि यह पहले ही हो रहा है.

भारत ने हथियारों के मामले में पिछले 5-10 सालों में अपने सैन्य व्यवसाय में नए साथियों को शामिल किया है, जिसमें अमेरिका, इजरायल और फ्रांस शामिल हैं.

भारत अमेरिका की सैन्य साझेदारी लगभग शून्य से बहुत आगे बढ़ गई है. लेकिन यहां विकास की बहुत संभावनाएं हैं.” रूसी सैन्य उपकरणों के विकल्प के महंगे होने प्रश्न पर आत्मन त्रिवेदी ने कहा,

“भारत जानता है कि अमेरिकी सैन्य सामान बेहद अच्छा है और उन्नत तकनीक का है. मूल्य की तुलना करें तो हमारा सामान लंबे समय तक चलने वाला है. विश्वस्नीय है. मैं भारत-अमेरिका की रक्षा साझेदारी को लेकर बेहद आशान्वित हूं.

अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट, दोनों की पार्टियों की सरकार में यह साझेदारी बढ़ी है. इसकी एक वजह यह है कि अमेरिका और भारत की दुनिया की खतरों को एक-तरह से देखते हैं,

दूसरा कारण चीन का हम दोनों लोकतंत्रों के प्रति व्यवहवार है. इससे भारत अमेरिका रणनीतिक मामलों में अमेरिका के नज़दीक आया है.”

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *