
हाईकोर्ट ने CBI जांच के दिए आदेश
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दिव्यांग कल्याण के नाम पर हुए 1000 करोड़ के घोटाले की जांच अब CBI को सौंपी है। कोर्ट की डिवीजन बेंच (जस्टिस प्रार्थ प्रतीम साहू और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल) ने टिप्पणी की कि यह मामला सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर सिस्टमेटिक करप्शन का है।
फर्जी कर्मचारियों के नाम पर वेतन निकाला गया
जांच में सामने आया कि संस्थानों में फर्जी कर्मचारियों के नाम पर वेतन निकाला गया और सरकारी फंड की लूट की गई। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने अब तक मामले की तह तक जाने और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई करने में गंभीरता नहीं दिखाई।

दिव्यांग कल्याण के नाम पर बना संस्थान
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2004 में राज्य सरकार ने दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए स्टेट रिसोर्स सेंटर (SRC) की स्थापना की थी।
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2012 में इसी के तहत फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (PRRC) खोला गया, जिसका उद्देश्य कृत्रिम अंग और चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना था।
लेकिन RTI में खुलासा हुआ कि ये संस्थान सिर्फ कागजों पर ही मौजूद थे।
याचिका में किए गंभीर आरोप
रायपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने 2018 में जनहित याचिका दायर कर दावा किया कि:
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संस्थान नाममात्र ही सक्रिय थे।
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कर्मचारियों की नियुक्ति किए बिना उनके नाम पर वेतन निकाला गया।
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यहां तक कि याचिकाकर्ता के नाम पर भी फर्जी रिकॉर्ड बनाकर वेतन निकाला गया, जबकि उसने कभी वहां काम ही नहीं किया।
ऑडिट रिपोर्ट में खुलीं 31 अनियमितताएं
वित्त विभाग की ऑडिट में चौंकाने वाली बातें सामने आईं:
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14 साल तक SRC का ऑडिट नहीं हुआ।
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फर्जी नामों से वेतन उठाया गया।
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नकद भुगतान के सबूत मिले।
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कृत्रिम अंग और मशीनों की खरीद कभी नहीं की गई।
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2019 में प्रबंधन समिति ने संस्थान को भंग कर खाते बंद कर दिए।
कई बड़े अधिकारियों पर आरोप
याचिका में कई बड़े नाम सामने आए हैं, जिनमें पूर्व मंत्री और रिटायर्ड IAS अधिकारी भी शामिल हैं:
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विवेक ढांड
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एमके राउत
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आलोक शुक्ला
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सुनील कुजूर
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बीएल अग्रवाल
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सतीश पांडेय
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पीपी श्रोती
हालांकि कोर्ट ने पूर्व मंत्री रेणुका सिंह के खिलाफ आदेश नहीं दिया, लेकिन बाकी अधिकारियों पर जांच की तलवार लटक रही है।
कोर्ट का सख्त रुख
हाईकोर्ट ने कहा कि यह मामला सिर्फ दिव्यांगों के अधिकारों का हनन नहीं, बल्कि सार्वजनिक धन की भारी लूट है। इसलिए इसकी निष्पक्ष जांच केवल CBI ही कर सकती है।
