
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि निष्पक्ष सुनवाई प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक और मानवीय अधिकार है, और इसे किसी भी परिस्थिति में छीना नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह टिप्पणी उस मामले में की जहां ट्रायल कोर्ट ने एक लकवाग्रस्त पीड़ित को दोबारा गवाही का मौका नहीं दिया था।
पीड़ित की तबीयत बिगड़ी, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने नहीं दिया दूसरा मौका
यह मामला सूरजपुर जिले के दंडागांव का है, जहां मुकेश ठाकुर ने शिकायत की थी कि झारखंड और बिहार के सात आरोपियों ने उसके पिता नंदकेश्वर ठाकुर पर जानलेवा हमला किया। आरोपियों के खिलाफ धारा 147, 294, 506(2), 307 और 149 आईपीसी के तहत केस दर्ज हुआ था।

पीड़ित की उम्र 62 वर्ष है और वह लकवाग्रस्त है। उसकी हालत को देखते हुए कोर्ट ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC) के माध्यम से गवाही की अनुमति दी थी। निर्धारित तारीख 3 मई 2025 को उसकी तबीयत बिगड़ गई और वह गवाही नहीं दे सका। उसके वकील ने मेडिकल सर्टिफिकेट और इलाज की पर्चियां कोर्ट को सौंपीं, लेकिन इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने दोबारा मौका नहीं दिया।
High Court ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बताया अनुचित
जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की सिंगल बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि:
“न्याय का मूल उद्देश्य निष्पक्ष सुनवाई है। यह केवल आरोपी ही नहीं, बल्कि पीड़ित और समाज के लिए भी जरूरी है।”
कोर्ट ने साफ कहा कि पीड़ित पक्ष को अपनी बात कहने का एक और अवसर अवश्य मिलना चाहिए। इस आधार पर हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए, याचिकाकर्ता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दोबारा गवाही का मौका देने का निर्देश दिया।
निष्पक्ष सुनवाई को संविधान और मानवाधिकार दोनों का समर्थन
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि निष्पक्ष सुनवाई सिर्फ कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह एक संवैधानिक और मानव अधिकार है, जिसे किसी भी कारणवश अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
