
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच जिसमें मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल शामिल थे, ने एक जघन्य अपराध पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि बलात्कार केवल शारीरिक हमला नहीं है, यह पीड़िता की आत्मा को गहरा घाव देता है। यह अपराध समाज के मूल मूल्यों को झकझोरता है और अदालतों की जिम्मेदारी बनती है कि वे ऐसे मामलों को संवेदनशीलता के साथ देखें।
ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी प्राकृतिक मृत्यु तक सजा, हाई कोर्ट ने बदली सजा

निचली अदालत ने आरोपी पिता को IPC की धारा 376(3) के तहत दोषी करार देते हुए प्राकृतिक मृत्यु तक आजीवन सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। इसके साथ ही ₹500 का जुर्माना भी लगाया गया था। जुर्माना न देने पर एक माह का अतिरिक्त सश्रम कारावास निर्धारित किया गया था।
हालांकि, हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद सजा को आंशिक रूप से बदलते हुए 20 साल के कठोर कारावास में परिवर्तित कर दिया।
पीड़िता की दर्दभरी आपबीती, पढ़कर कांप जाएगी रूह
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पीड़िता, जो सातवीं कक्षा तक पढ़ी है, अपनी मां के निधन के बाद पिता के साथ रहती थी।
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पिता आए दिन शराब पीकर गाली-गलौज व मारपीट करता था।
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19 फरवरी 2019 की रात को पिता ने उसके साथ दुष्कर्म किया और धमकाया कि किसी को न बताए।
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भयभीत होकर लड़की डोंगरगढ़ भाग गई और वहां से ट्रेन पकड़कर रायपुर पहुंची, जहां कई दिनों तक रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर गुज़ारा किया।
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रेलवे चाइल्ड हेल्पलाइन ने लड़की को पाया और पुलिस व बाल कल्याण समिति की मदद से FIR दर्ज करवाई गई।
याचिकाकर्ता की दलीलें, हाई कोर्ट में अपील की छूट
अभियुक्त के वकील ने यह दलील दी कि ट्रायल कोर्ट का निर्णय गलत है और मामले में साक्ष्य पर्याप्त नहीं हैं। साथ ही FIR दर्ज करने में देरी को लेकर भी सवाल उठाए गए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आरोपी चाहे तो सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति या सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति की मदद से अपील कर सकता है।
कोर्ट का स्पष्ट संदेश: अपराध की गंभीरता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता
कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि बलात्कार जैसे अपराधों पर कठोर रुख और संवेदनशील न्याय ही समाज में न्याय की उम्मीद बनाए रख सकते हैं।
