बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि केवल इस आधार पर मृत कर्मचारी की विधवा को पेंशन व अन्य लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता कि दस्तावेज में उनका नाम अलग-अलग है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के सिंगल बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि मृतक एसईसीएल कर्मचारी की पत्नी को सेवानिवृत्ति बकाया राशि का भुगतान आदेश की प्रति मिलने से 60 दिन के भीतर करना होगा।

कोर्ट ने एसईसीएल के अफसरों को यह भी निर्देशित किया है कि तय समय मे भुगतान ना करने पर रिट याचिका के दाखिल होने की तिथि से 11 अप्रैल.2023 तक कुल राशि का 6 फीसद व्याजकी की दर से भुगतान करना पड़ेगा। कोर्ट ने इस पूरे मामले को बेहद गम्भीरता से लिया है। यही कारण है कि एसईसीएल के अफसरों को सशर्त आदेश जारी किया है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रमुख पक्षकारों के बीच अगर किसी तरह की बात हो तो उसे तय अवधि के भीतर पूरा कर लिया जाय। मतलब ये कि याचिकाकर्ता को भुगतान करने में किसी तरह का अड़चन ना आये व तय अवधि में राशि मिल जाय।

क्या है मामला

सुखमनिया उर्फ़ सुखानी ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बताया है कि उसके पति स्व. लक्ष्मण गायत्री माइंस विश्रामपुर एसईसीएल में हैमरमेन के तौर पर पदस्थ थे । सेवाकाल के दौरान 30 सितंबर 2019 को उनका निधन हो गया । वह और उसके बेटे ने अनुकम्पा नियुक्ति और लंबित देयकों के भुगतान के लिए एसईसीएल प्रबंधन के समक्ष आवेदन दिया था। एसईसीएल प्रबंधन ने बताया कि, दस्तावेजों में अलग-अलग नाम दर्ज होने के कारण भुगतान नहीं करने की बात कही।

इसके बाद उसने अपने नाम की समुचित घोषणा के लिए सिविल जज सूरजपुर के कोर्ट में सिविल परिवाद दायर किया । सिविल जज ने 12 अगस्त 2022 को याचिकाकर्ता पक्ष में डिक्री पारित कर दी। इस बीच याचिकाकर्ता के बेटे अलोक को अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान कर दी गई। मामले की सुनवाई जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की सिंगल बेंच में हुई। एसईसीएल ने कोर्ट को बताया कि सीएमपीएफ कमिश्नर जबलपुर को प्रकरण भेज दिया था।

कोर्ट ने ये दिया फैसला

मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने एसईसीएल प्रबंधन को निर्देशित किया कि सेवानिवृत्ति की बकाया राशि इस आदेश की कॉपी मिलने की तिथि से 60 दिन के भीतर याचिकाकर्ता को समस्त देयकों का भुगतान कर दी जाए। निर्धारित तिथि तक भुगतान ना करने की स्थिति में रिट याचिका दाखिल होने की तिथि से 11.अप्रैल .2023 तक छह फीसद ब्याज के साथ याचिकाकर्ता को भुगतान करने का निर्देश दिया है।

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