अयोध्या|News T20: अयोध्या में विराजमान रामलला की प्रतिमा देश के लोकप्रिय मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई है। वही पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने रामलला के विग्रह को तैयार होने के पश्चात सबसे पहले देखा।
ऐसे में प्राण-प्रतिष्ठा के पश्चात् उनसे कई प्रकार के सवाल हो रहे हैं। उनसे उनका अनुभव पूछा जा रहा है। इन सवालों के उत्तर देते हुए उन्होंने अपने इंटरव्यूज में हैरान कर देने वाले खुलासे किए हैं। अरुण योगीराज ने अपने एक इंटरव्यू में चर्चा करते हुए कहा कि ये कार्य उन्होंने स्वयं नहीं किया भगवान ने उनसे करवाया है। वह बोलते हैं कि जब वो रामलला की प्रतिमा को गढ़ रहे थे तो रोज उस प्रतिमा से बात करते थे। वह कहा करते थे, ‘प्रभु बाकी लोगों से पहले मुझे दर्शन दे दो।’ योगीराज की मानें तो जब प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा हुई तो उन्हें लगा ही नहीं कि वो प्रतिमा उनके द्वारा बनाई गई है। उसके हाव-भाव बदल चुके थे। इस बारे में उन्होंने लोगों से कहा भी कि उन्हें नहीं भरोसा हो रहा प्रतिमा उनके द्वारा बनाई गई है। उन्होंने माना कि यदि वो प्रयास भी करें तो दोबारा इस प्रकार का विग्रह कभी नहीं बना सकते।
उन्होंने कहा, ‘जब मैंने प्रतिमा बनाई तब वो अलग थी। गर्भगृह में जाने के बाद और प्राण-प्रतिष्ठा के पश्चात् वो अलग हो गई। मैंने 10 दिन गर्भगृह में गुजारे। एक दिन जब मैं बैठा था मुझे अंदर से लगा ये तो मेरा काम है ही नहीं। मैं उन्हें पहचान नहीं पाया। अंदर जाते ही उनकी आभा बदल गई। मैं उसे अब दोबारा नहीं बना सकता। जहाँ तक छोटे-छोटे विग्रह बनाने की बात है वो बाद में सोचूँगा।’ रामलला की प्रतिमा पर इंटरव्यू देते वक़्त अरुण योगीराज नंगे पाँव बैठे नजर आए। उन्होंने कहा कि राम को दुनिया को दिखाने से पहले स्वयं मानना था कि मूरत में राम हैं। वह बोले, ‘मैं दुनिया को दिखाने से पहले उनके दर्शन करना चाहता था। मैं उन्हें बोलता था- दर्शन दे दीजिए प्रभु। तो, भगवान मेरी जानकारी जुटाने में स्वयं मदद कर रहे थे। कभी दीपावली के समय कोई जानकारी मिल गई। कुछ तस्वीरें मुझे वो मिल गईं जो 400 वर्ष पुरानी थीं। हनुमान जी भी हमारे दरवाजे पर आते थे गेट खटखटाते थे, सब देखते थे, फिर चले जाते थे।’
अपने अद्भुत अनुभवों को बताते हुए उन्होंने कहा, ‘प्रतिमा बनाने के चलते हर रोज एक बंदर शाम में 4 से 5 बजे के बीच उस जगह आता था, वो सब देखकर चला जाता था। ठंड में हम दरवाजे बंद करने लगे। जब उसने ऐसा देखा तो वो तेज की दरवाजा खोलता अंदर आता, देखता तथा चला जाता। शायद उनका भी देखने का मन होता होगा।’ वही योगीराज से जब पूछा गया कि क्या उन्हें सपने भी आते थे कुछ, तो उन्होंने कहा कि वो बीते 7 महीनों से ढंग से सो ही नहीं पाए हैं। इसलिए वो इस पर कुछ नहीं बोल सकते। उनके जहन में हमेशा था कि जो वो कर रहे हैं वो देश को पसंद आना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनकी विश्वकर्मा समुदाय सदियों से यही काम करता आया है। उनके स्थानीय क्षेत्र में कहावत भी चलती है- ‘भगवान के स्पर्श से पत्थर फूल बन गए और शिल्प के स्पर्श से पत्थर भगवान बन गए।’
वही इतना सराहनीय कार्य करने के पश्चात् भी अरुण इस रामलला के विग्रह के लिए सारा श्रेय खुद नहीं लेते। वो बोलते हैं कि भगवान ने उनसे ये करवाया है। वरना वो प्रतिमा कैसे गढ़ पाते। उन्होंने एक अन्य इंटरव्यू में कहा कि उन लोगों ने रामलला को पत्थर से मूरत में देखने के लिए 6 महीने तक इंतजार किया। उन्होंने बताया कि उनकी बनाई राम प्रतिमा 51 इंच की है। ऐसा इसलिए क्योंकि वैज्ञानिकों की गणित थी इतनी इंच की प्रतिमा हुई तो राम नवमी वाले दिन सूर्य की किरण प्रभु श्री राम के मस्तक पर सीधे पड़ेंगी। इस इंटरव्यू में भी उन्होंने यही बताया कि वो अपने असिस्टेंट्स के जाने के पश्चात् भगवान के विग्रह के पास अकेले बैठते थे तथा यही प्रार्थना करते थे कि प्रभु दूसरों से पहले उन्हें दरश देना।