भिलाई [न्यूज़ टी 20] राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत सिन्हा के समर्थन का ऐलान कर आम आदमी पार्टी ने बड़ा सस्पेंस कर दिया है। खबर है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस फैसले के तार गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव से जुड़े हो सकते हैं। खास बात है

कि सिन्हा को वोट देने का फैसला करने वाली आप ने विपक्ष की बैठकों से दूरी बनाई थी। साथ ही कांग्रेस के अलावा आप ही ऐसी पार्टी है, जिसकी एक से ज्यादा राज्य में सरकार है। 15वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सोमवार को मतदान होना है।आप ने चुनाव से महज दो दिन पहले ही सिन्हा के समर्थन की बात रखी है।

हालांकि, जून में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने कहा था कि आप पूर्व केंद्रीय मंत्री का समर्थन करने जा रही है। आप के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल ने 11 सदस्यीय पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी (PAC) के साथ अपने आवास पर बैठक की थी।

बैठक में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, आतिशी, दुर्गेश पाठक और राघव चड्ढा भी शामिल रहे थे। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आप के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘आप इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ेगी, जहां भाजपा सत्ता में है और कांग्रेस मुख्य विपक्ष है।

आप को भाजपा की बी-टीम के तौर पर दिखाने का मौका कांग्रेस को देने का कोई मतलब नहीं बनता।’रिपोर्ट के अनुसार, आप इसके अलावा उन प्रतीकों को लेकर भी सतर्क नजर आ रही है, जिन्हें भाजपा द्रौपदी मुर्मू के जरिए दिखा रही है।

पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इसे लेकर भी प्रतिक्रिया दी थी। बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘भाजपा उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के लिए हमारे मन में सम्मान है, लेकिन चुनाव में हम विपक्ष के राष्ट्रपति चेहरे का समर्थन करेंगे।’

आप के समर्थन का गणित समझें राष्ट्रपति चुनाव के इलेक्टोरल कॉलेज में आप के पास करीब 1.96 फीसदी वोट हैं। पार्टी के 10 राज्यसभा सांसदों की वोट की कीमत 7 हजार है। जबकि, दिल्ली, पंजाब और गोवा के विधायकों को मिलाकर यह संख्या 14 हजार 308 पर है।

ऐसे में आप का समर्थन हासिल करने के बाद सिन्हा 4 लाख से ज्यादा वोट हासिल कर सकते हैं। जबकि, संभावनाएं जताई जा रही हैं कि मुर्मू को 6.60 लाख वोट मिल सकते हैं। साल 2017 में भी आप ने चुनाव से तीन दिन पहले ही कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार के समर्थन का ऐलान किया था।

हालांकि, उस दौरान कांग्रेस ने 17 विपक्षी दलों की बैठक से आप को दूर रखा था। इस बार तृणमूल कांग्रेस और राकंपा विपक्ष की बैठकों के लिए सक्रिय नजर आ रहे थे और आप ने खुद ही इन चर्चाओं से दूरी बना ली थी।

रिपोर्ट के अनुसार, आप के सूत्रों ने कांग्रेस के साथ एक मंच साझा करने में ‘असहजता’ का जिम्मेदार इसे बताया था।इधर, राजनीति में टीएमसी भी भाजपा की मुख्य प्रतिद्विंदी बनने के मौके तलाश रही है। रिपोर्ट में सूत्र के हवाले से लिखा गया,

‘आप ने अपने फैसलों से यह स्पष्ट कर दिया है कि वह राजनीति तौर पर इस धारणा को मजबूत करके आगे बढ़ना चाहती है कि वह दूसरों से अलग है। भाजपा का विरोध करने के अलावा बगैर किसी मूल्यों के बड़े समूह का हिस्सा बनना आप के लिए मददगार नहीं है।’

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *