पिरामिड दुनिया के इतिहास के सबसे रहस्यमयी चीजें हैं. वैसे तो इनके बारे में कई खुलासे हो चुके हैं, लेकिन वे भी बहुत विवाद से भरे हैं और आने वाले समय में और अधिक खुलासों के मोहताज हैं. ऐतिहासिक शोधकर्ताओं के लिए ये सबसे रोमांचकारी विषयों में से एक हैं. हाल ही में एक नए अध्ययन में एक नया, लेकिन सनसनीखेज खुलासा हुआ है. शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं. मिस्र में प्रसिद्ध गीजा पिरामिड परिसर का निर्माण करने वाले मजदूरों को तांबे से जहर दिया गया था.

अध्ययन से संकेत मिलता है कि नेक्रोपोलिस पर काम करते समय, मजदूरों को शायद ज्यादा मात्रा में तांबे के संपर्क में लाया गया था जो दुनिया में धातु संदूषण यानी धातु से जहर दिया जाने का पहला उदाहरण हो सकता है. इतना नही नहीं  प्राचीन मिट्टी में जहरीले तांबे की खोज ने उस समय के दौरान एक अच्छी तरह से स्थापित उपकरण बनाने वाले उद्योग के होने का भी संकेत दिया है.

फ्रांस के ऐक्स-मार्सिले यूनिवर्सिटी के भू-रसायनज्ञों की एक टीम ने 2019 में खुफू बंदरगाह के 4,500 साल पुराने बंदरगाह में जमीन में ड्रिलिंग शुरू की. यह शहर में अब तक का सबसे पुराना बंदरगाह है और उस जगह के करीब है जहां फिरौन खुफू, खफरे और मेनकौर के पिरामिड मौजूद हैं.

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वैज्ञानिकों ने खास कार्बन डेटिंग तकनीक का इस्तेमाल किया था.

वैज्ञानिकों ने प्लाज्मा-रहित स्पेक्ट्रोमेट्री नामक तकनीक का उपयोग करके जमा किए गए नमूनों की जांच की, जो तांबे के साथ-साथ एल्यूमीनियम, लोहा और टाइटेनियम जैसी अन्य धातुओं के स्तर को मापने में मदद करती है. एक नए अध्ययन में, उसी टीम ने कार्बन डेटिंग का उपयोग किया और बताया कि तांबे का संदूषण 3265 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ था, जिसका मतलब है कि इंसानों ने, जितना समझा जा रहा था, उससे 200 साल पहले इस तकनीक का उपयोग शुरू कर दिया था.

750 वर्षों के बाद, संदूषण का काम चरम पर था और आखिर 1000 ईसा पूर्व के आसपास गायब हो गया. फ्रांस के ऐक्स-मार्सिले विश्वविद्यालय के एक संकाय सदस्य एलेन वेरॉन ने ईओएस से बात करते हुए कहा कि तांबे का स्तर “प्राकृतिक रूप से 5 से 6 गुना अधिक था.” शोधकर्ताओं के अनुसार, तांबे की मौजूदगी एक संपन्न उपकरण बनाने वाले उद्योग के होने का भी इशारा करती है. अध्ययन ने आगे जोर दिया कि ये उपकरण पिरामिड परिसर के निर्माण के लिए सबसे महत्वपूर्ण थे.

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