
अमेरिका में गर्भवती महिला को ब्रेन डेड घोषित करने के बाद भी रखा गया लाइफ सपोर्ट पर, मामला बना नैतिक बहस का कारण
अक्सर फिल्मों में हम देखते हैं कि डॉक्टर परिवार से पूछते हैं – “मां को बचाएं या बच्चे को?” लेकिन अमेरिका के जॉर्जिया में यह फैसला घरवाले नहीं, कानून करता है।
यहां एक महिला को ब्रेन डेड घोषित किए जाने के बावजूद सिर्फ उसके गर्भस्थ शिशु को बचाने के लिए जीवन रक्षक उपकरणों (life support) पर रखा गया है।
9 हफ्ते की गर्भवती महिला को फरवरी में घोषित किया गया ब्रेन डेड
30 वर्षीय एड्रियाना स्मिथ, पेशे से नर्स और मां थीं। फरवरी 2025 में उन्हें अचानक सिरदर्द हुआ, जिसके बाद अटलांटा के नॉर्थसाइड अस्पताल में भर्ती कराया गया।
हालत बिगड़ने पर पता चला कि उनके दिमाग में खून के थक्के (blood clots) जम गए थे।
सर्जरी असफल रही और डॉक्टर्स ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया – उस वक्त वह 9 हफ्ते की गर्भवती थीं।

23 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के बावजूद महिला को जबरन रखा गया लाइफ सपोर्ट पर
अब एड्रियाना 23 हफ्ते की गर्भवती मानी जा रही हैं – क्योंकि उनका शरीर जीवित बनाए रखा गया है।
इस फैसले के पीछे है जॉर्जिया का सख्त गर्भपात कानून, जिसे ‘LIFE Act’ (Living Infants Fairness and Equality) कहा जाता है।
इस कानून के अनुसार, जब तक गर्भ में हृदय गति मौजूद हो, तब तक गर्भपात या जीवन समर्थन हटाना गैरकानूनी है।
अगस्त तक महिला के शरीर को ‘जिंदा’ रखा जाएगा, फिर होगा सिजेरियन
डॉक्टर्स का कहना है कि एड्रियाना को अगस्त 2025 तक लाइफ सपोर्ट पर रखना होगा, ताकि भ्रूण 32 हफ्ते का हो जाए और तब उसका सिजेरियन डिलीवरी किया जा सके।
यानी एक मृत महिला का शरीर सिर्फ भ्रूण को सुरक्षित रखने के लिए ज़िंदा बनाए रखा जा रहा है।
परिवार ने कहा – यह ‘मानवता के खिलाफ’, बच्ची को होगा गंभीर मानसिक विकार
एड्रियाना की मां एप्रिल न्यूकिर्क कहती हैं:
“यह यातना है। मैं अपनी बेटी को सांस लेते हुए देखती हूं, लेकिन वह अब इस दुनिया में नहीं है।”
परिवार को बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर भी गहरी चिंता है –
डॉक्टर्स ने बताया है कि भ्रूण को हाइड्रोसेफेलस नाम की गंभीर बीमारी है, जिसमें दिमाग में अत्यधिक द्रव जमा हो जाता है।
इससे बच्चा अंधा, विकलांग या अल्पायु हो सकता है।
कानूनी डर या नैतिक जिम्मेदारी? बहस में बंटा अमेरिका
यह मामला अमेरिका में गर्भपात कानूनों, चिकित्सा नैतिकता, और व्यक्तिगत अधिकारों पर भारी बहस का कारण बन गया है।
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कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अस्पताल कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए महिला को जीवन रक्षक उपकरणों पर रखे हुए है।
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वहीं अन्य मानते हैं कि इंसान को गरिमापूर्ण मृत्यु का अधिकार होना चाहिए।
