बस्ती: जनपद के गौर विकास खंड के महुआडाबर ग्राम पंचायत में स्थित ऐतिहासिक भुइलाडीह (भूलेश्वर नाथ) टीला प्राचीन काल के रहस्यों को समेटे हुए है. यह ऐतिहासिक स्थल लगभग 200 एकड़ में फैला हुआ है. ग्रामीणों के अनुसार, जब तालाब की खुदाई की गई तो करीब 15 से 20 फुट नीचे पक्की सड़क, साखू के बोटे, और ईंटों से बनी दीवारें मिलीं, जो इस स्थान के प्राचीन महत्व को दर्शाती हैं.

तालाब के पास ही एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है, जिसके करीब एक रहस्यमयी सुरंग भी है. लोगों का मानना है कि यह सुरंग लगभग 5 किलोमीटर लंबी है. सुरंग के प्रवेश द्वार को 40 फीट नीचे ईंट-पत्थरों से बंद कर दिया गया था, जबकि बाहर मुख्य द्वार पर लोहे का गेट लगाया गया है. इस सुरंग और मंदिर के आसपास के इलाके में कई रहस्यमयी कहानियां प्रचलित हैं, जो इस स्थान को और भी रहस्यमय बनाती हैं.

तालाब और टीले का इतिहास

ऐसा माना जाता है कि 1250 ईस्वी में थारू समाज के लोग इस क्षेत्र में निवास करते थे और यहां पूजा-पाठ करते थे. कई साल पहले टीले की खुदाई के दौरान यहां से लंबी तलवारें और 10 फीट लंबे कंकाल मिले थे. इसके अलावा, खुदाई में छोटी-छोटी सोने की मूर्तियां और सिक्के भी मिले थे. गोरखपुर के क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी नरसिंह की अगुवाई में आई टीम के अनुसार, यहां से मिले ईंटों और बर्तनों के टुकड़े छठी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 1250 ईस्वी तक के हैं, जो दर्शाता है कि यह स्थान 2600 वर्ष पूर्व एक नगर रहा होगा.

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ग्रामीणों की मान्यताएं और अनुभव

ग्रामीण राम आसरे बताते हैं कि इस तालाब की मिट्टी का उपयोग राजा द्वारा टीले के निर्माण के लिए किया गया था. उन्होंने यह भी कहा कि रात में तालाब में एक सोने की नाव चलती थी, जिसमें राजा, रानी, और परियां बैठकर भ्रमण करती थीं. शिव मंदिर में भारी मात्रा में सोना और चांदी छिपा हुआ माना जाता है.

क्या है कहानी

कुछ वर्षों पूर्व, जब एक नाई ने हल चलाते समय मटके में सोना-चांदी पाया था, तो उसके बाद उसके बैल की मृत्यु हो गई और खजाने से मायारूपी आवाजें आने लगीं. यह सुनकर नाई ने वह खजाना वहीं वापस रख दिया, जहां से उसने इसे पाया था. ग्रामीणों का मानना है कि खुदाई में और भी बड़े ईंटें और मकानों की नींव मिल सकती है, जो इस स्थल की प्राचीनता और महत्व को और बढ़ा सकती हैं.

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