केरल के हरे-भरे वातावरण में स्थित नीरपुथूर मंदिर न केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि यह वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए भी एक रहस्यमयी स्थल बन चुका है। करीब 3000 साल पुराने इस मंदिर की संरचना और उसमें छिपे रहस्य आज भी विज्ञान के लिए एक अबूझ पहेली हैं।

स्वयंभू शिवलिंग: न इंसानी हाथों की रचना, न कोई निर्माण काल

इस मंदिर का सबसे रहस्यमय तत्व है इसका स्वयं प्रकट शिवलिंग, जिसे न तो किसी ने बनाया, न ही इसके निर्माण की कोई तारीख दर्ज है। स्थानीय श्रद्धालु इसे आस्था और चमत्कार का प्रतीक मानते हैं, जबकि वैज्ञानिक इसकी उत्पत्ति को समझने में अब तक असफल रहे हैं।

चमत्कारी जल स्रोत: हर मौसम में शिवलिंग के पास रहता है जल

मंदिर के गर्भगृह में स्थित जल स्रोत भी किसी रहस्य से कम नहीं। यह जल हर मौसम में मौजूद रहता है – न सूखता है, न कम होता है। भूवैज्ञानिक अब तक यह पता नहीं लगा पाए हैं कि यह जल आता कहां से है। श्रद्धालु इसे औषधीय जल मानते हैं, जो रोगों से मुक्ति देता है।

अद्भुत वास्तुशास्त्र और खगोल विज्ञान का मेल

नीरपुथूर मंदिर की बनावट में ऐसा वास्तु और खगोल विज्ञान का समावेश है, जिसे आज के आधुनिक उपकरण भी पूरी तरह माप नहीं पाए हैं। गर्भगृह का तापमान, ऊर्जा प्रवाह और वहां की आंतरिक संरचना को लेकर वैज्ञानिकों ने कई प्रयास किए, लेकिन निष्कर्ष अब भी एक रहस्य बना हुआ है।

विज्ञान की सीमा और आस्था की शक्ति

इस मंदिर को देखकर यह स्पष्ट होता है कि कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं, जिन्हें केवल आस्था और अनुभव से ही समझा जा सकता है। विज्ञान जहां रुक जाता है, वहां से आध्यात्मिकता की यात्रा शुरू होती है।

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