भिलाई/बिलासपुर [ News T20 ]। छत्तीसगढ़ में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने के मामले में सियासत सरगर्मी बढ़ती जा रही है. राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ बीजेपी मोर्चा खोल चुकी है. इसको लेकर सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी किया जा रहा है. बीजेपी का आरोप हैं कि यह सरकार पहले आरक्षण बढ़ाने का ऐलान करती है. बाद में अपने ही लोगों के द्वारा कोर्ट से स्टे ले आती है. बीजेपी ओबीसी मोर्चे के जिलाध्यक्ष सुनील चौधरी कहते हैं कि सरकार ओबीसी हितौषी बनने का केवल ढोंग करती है. वह आरक्षण देना ही नहीं चाहती है. जबकि शिक्षण संस्थाओं में केंद्र सरकार ने आरक्षण लागू किया है तो वहीं मध्य प्रदेश में भी आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है.
आरक्षण की आंच का सियासी पहलु आपको बताए इससे पहले जान लीजिए की छत्तीसगढ़ में आरक्षण की क्या व्यवस्था है. दरअसल छत्तीसगढ़ में एसटी को 32 फीसदी, एससी को 13 फीसदी, ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है. 15 अगस्त 2019 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करने के ऐलान किया था. साथ ही सवर्ण गरीबों को भी 10 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान किया था. मगर समाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला सरकार के निर्णय के खिलाफ कोर्ट चले गए और कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण देने का उचित आधार ना पाए जाने पर रोक लगा दी. वहीं सवर्ण गरीब आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में होने का हवाला दिया.
छत्तीसगढ़ में ओबीसी आरक्षण की सियासी आंच तब से सुलग रही है. बीजेपी के तंज पर कांग्रेस ने दोहरा पलटवार किया. कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह ने कहा कि बीजेपी खुद आरक्षण विरोधी पार्टी है. मोहन भागवत का बयान पूरे देश ने सुना है. अगर बीजेपी कभी धोखे से भी सत्ता में आई तो सबसे पहले आरक्षण समाप्त करेगी. वहीं कांग्रेस ओबीसी मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष डॉ चोलेश्वर चंद्राकर कहते हैं राज्य सरकार ने डेटा कलेक्शन का कार्य पूरा करवा लिया है. जल्द ही ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण मिलेगा.
बहरहाल छत्तीसगढ़ में OBC वर्ग की राजनीति बेहतर भविष्य की ओर इशारा कर रही है. यही वजह है कि OBC हितौषी बनने राजनीतिक दलों में होड़ सी मची हुई है. ऐसे में आरक्षण को लेकर छत्तीसगढ़ सहित देशभर में गाहे-बगाहे चर्चाएं होते रहती है. छत्तीसगढ़ में चुनाव से करीब एक साल पहले OBC आरक्षण की आंच सुलगने लगी है, जो कितना असरकार होगी आने वाला वक्त ही तय करेगा.