भिलाई [न्यूज़ टी 20] वह दिन लद गए जब सत्तू को गरीब या किसानों का आहार माना जाता था. भारत में जन्मा सत्तू विश्व का एक ऐसा ‘इंस्टेंट फूड’ है, जिसका सेवन करते ही शरीर में तुरंत ऊर्जा पैदा हो जाती है. इसे खाया भी जा सकता है और पानी में मिलाकर पिया भी जा सकता है.

बहुपयोगी है सत्तू, क्योंकि तुरत-फुरत इसे कई डिशेस में तब्दील किया जा सकता है. गर्मी के मौसम में सत्तू गर्मी से बचाव का बेहतर आहार है. आयुर्वेद के ग्रंथों में सत्तू को जादुई आहार वर्णित किया गया है जो शरीर को तृप्त तो करता ही है, साथ ही ‘तत्क्षण बल उत्पन्न करता’ है.

कृष्ण-सुदामा का मित्र और कोरोना का साथी

भारत में हजारों सालों से सत्तू का प्रयोग हो रहा है. भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता को सत्तू ने मजबूत किया, तो बौद्ध भिक्षु भी सत्तू के बल पर लंबी योग-साधना कर पाए. पुराने वक्त में सैनिकों के लिए प्रमुख आहार रह चुका है.

सत्तू तो भारत में कोरोना के प्रकोप के चलते गरीबों का पेट भरने के लिए शासन ने उन्हें सत्तू के पैकेट मुहैया कराए. इसीलिए इसे चमत्कारी आहार कहा गया है.

मुख्य तौर पर सत्तू दो प्रकार का होता है भूने हुए जौ और भूने चने के आटे से बना. अलग-अलग प्रदेशों में भुना मक्का, ज्वार, बाजरा, चावल, सिंघाड़ा, गेहूं पीसकर भी तैयार किया जाता है.

फूड भी है और ड्रिंक्स भी है सत्तू

यह ऐसा आहार है, जिसे खाया भी जा सकता है और पिया भी. आजकल गर्मियों में मीठा या नमकीन सत्तू का शीतल पेय बनाकर शरीर को ठंडा व तृप्त किया जा सकता है. सत्तू में चीनी, दूध आदि डालकर उसे दलिया के रूप में खा लीजिए,

मन करे तो उसे नरम गूंधकर, उसमें नीबूं और नमक डालकर हरी मिर्च के साथ खाइए, आनंद मिल जाएगा. सत्तू के भरवां पराठे आपकी भूख बढ़ा सकते हैं तो बिहार के पारंपरिक व्यंजन लिट्टी और राजस्थान की बाटी में भी यह स्वाद और ऊर्जा पैदा कर देता है.

अब तो नामी रेस्तरां और होटलों में सत्तू की डिश परोसी जाने लगी है तो घरों में खाद्य पदार्थ पहुंचाने वाली ऑनलाइन वेबसाइट सत्तू के पैकेट बेच रही है.

हम कह सकते हैं खाद्य पदार्थों की दुनिया में सत्तू ने ऊंची उड़ान भरी है. उसका कारण यह है कि इसे भोजन के रूप में प्रयोग करने के लिए न तो ईंधन चाहिए, न ही बर्तन, तेल/घी आदि. जब मन कर खा लीजिए या पी लीजिए.

लंबी दूरी में साथ ले जाते थे सत्तू

हजारों साल से सत्तू भारत का आहार बना हुआ है. सालों पूर्व लिखे गए आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ के ‘कृतान्नवर्ग:’ अध्याय में इसका विस्तार से वर्णन है और इसे ‘शक्तव:’ कहा गया है. इस आहार को लेकर अनेक कथाएं/किंवदंतिया हैं.

कहा जाता है कि आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए लंबी यात्राएं करने वाले बौद्ध भिक्षु भोजन के रूप में अपने साथ ‘त्सम्पा’ (एक प्रकार का सत्तू) रखते थे.

कुषाण, मौर्य साम्राज्य में सेना को पौष्टिक भोजन के रूप में सत्तू भी एक घटक होता था. उस वक्त लंबी दूरी पर जाने वाले सौदागर भी अपने साथ तैयार सत्तू को अपने साथ रखते थे.

‘चरकसंहिता’ में कहलाया ‘बाजीकरण द्रव्य’

कुछ तो बात है सत्तू में, तभी तो यह हजारों साल से खाया-पिया जा रहा है. ‘चरकसंहिता’ में सत्तू की खूब प्रशंसा की गई है. वहां वर्णन है कि यह शरीर को तुरंत तृप्त करने वाला है. ग्रंथ में इसे ‘बाजीकरण द्रव्य’ (चमत्कारी) की संज्ञा दी गई है

और कहा गया है कि यह तत्क्षण शरीर में बल उत्पन्न करता है. यह हलका, मधुर, शीतल, पित्तनाशक और प्यास व ज्वर को नष्ट करने वाला है. इसे वातवर्धक भी बताया गया है.

आहार विशेषज्ञ भी इसे शरीर के लिए खासा लाभकारी मानते हैं, क्योंकि यह प्रोटीन से भरपूर और तेल मुक्त है. साथ ही इसमें कैल्शियम और कार्बोहाइड्रेट भी पर्याप्त मात्रा में है.

शरीर को फिट और स्वस्थ रखता है

आहार विशेषज्ञ व होमशेफ सिम्मी बब्बर के अनुसार यह दुनिया का सबसे पहला इंस्टेंट फूड है. यह शरीर को फिट और स्वस्थ रखता है. यह शुगर को कंट्रोल रखता है, साथ ही पेट की बीमारियों व मोटापे को बढ़ने नहीं देता.

इसमें आयरन भी पाया जाता है जो रक्तप्रवाह में सहायक होता है. इसमें फाइबर भी खूब है, जो पेट को साफ रखता है. इन्हीं विशेषताओं के चलते उच्च वर्ग के लोग भी इसे अपने आहार में शामिल कर रहे हैं. उसका बड़ा कारण यह है कि यह शुद्ध फूड है.

इतनी विशेषताएं होने के बावजूद यह किफायती भी है. सत्तू में कोई अवगुण नहीं है, बस ज्यादा खाने से यह थोड़ी समस्या पैदा कर सकता है. यह पेट फुला देगा और कब्ज का भी कारक बन जाएगा. इसकी ज्यादा मात्र कभी-कभी एसिडिटी बढ़ा देती है.

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