भिलाई [न्यूज़ टी 20] नई दिल्ली / देश के पहाड़ी इलाकों में रेल, बस या यातायात के अन्य साधनों की पहुंच अब भी पूरी नहीं हो सकी है. दुर्गम स्थानों पर सड़क बनवाना या रेल लाइन बिछाने का काम न सिर्फ कठिन है, बल्कि कई जगह तो प्राकृतिक कारणों से यह संभव भी नहीं है.

इसलिए केंद्र सरकार ने पर्वतीय प्रदेशों में ट्रांसपोर्ट का नया साधन, रोपवे सिस्टम विकसित करने की योजना बनाई है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2022-23 के लिए केंद्रीय बजट पेश करते हुए राष्ट्रीय पर्वतमाला योजना की घोषणा की.

पीपीपी मोड पर पूरे किए जाने वाले ये प्रोजेक्ट कठिन पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक सड़कों के स्थान पर एक आधुनिक तथा पर्यावरण के अनुकूल स्थाई विकल्प होगा. इससे पर्यटन को बढ़ावा देने के अलावा यात्रियों के लिए कनेक्टिविटी और सुविधाओं में सुधार होगा.

पर्वतमाला प्रोजेक्ट में भीड़भाड़ वाले उन शहरी क्षेत्रों को भी शामिल किया जा सकता है जहां पारंपरिक जल परिवहन संभव नहीं है. पहाड़ी क्षेत्रों में एक कुशल परिवहन नेटवर्क विकसित करना बड़ा चैलेंज है.

इन क्षेत्रों में रेल और हवाई परिवहन नेटवर्क सीमित है, जबकि सड़क नेटवर्क के विकास में तकनीकी मुश्किलें आती हैं. ऐसे में रोपवे वैकल्पिक परिवहन के रूप में एक सुविधाजनक और सुरक्षित साधन के तौर पर आकार ले रहा है.

फरवरी 2021 में भारत सरकार के एलोकेशन ऑफ बिजनेस नियम 1961 में संशोधन संशोधन किया गया जिसके जरिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को रोपवे और वैकल्पिक परिवहन के साधनों के विकास पर नजर रखने के लिए सक्षम बनाया गया.

उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, जम्मू और कश्मीर व अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इसके तहत काम को विस्तार दिया जाएगा.

पीएम मोदी ने की थी ‘पर्वतमाला योजना’ की शुरुआत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रोजेक्ट के बारे में कहा था कि देश में पहली बार, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व जैसे क्षेत्रों के लिए ‘पर्वतमाला योजना’ शुरू की जा रही है.

यह योजना पहाड़ों पर परिवहन और कनेक्टिविटी की आधुनिक व्यवस्था बनाएगी. यह हमारे देश के सीमावर्ती राज्यों भी मजबूत करेगा, जिन्हें जीवंत होने की जरूरत है और जो देश की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है.

इन वजहों से रोपवे कंस्ट्रक्शन को बढ़ावा

हवाई मार्ग होने के कारण रोपवे के निर्माण में भूमि अधिग्रहण की लागत कम होती है. रोडवेज की तुलना में प्रति किलोमीटर निर्माण की अधिक लागत होने की बावजूद रोपवे परियोजनाओं की निर्माण लागत उसकी तुलना में अधिक किफायती होती है.

इसके साथ ही पहाड़ी इलाकों में रोपवे को बनाने से दूरी तय करने में कम समय लगता है. रोपवे यात्रियों को शोर रहित यात्रा देता है तो वहीं निर्माण में पर्यावरण को नुकसान न्यूनतम है.

रोपवे के लाभ

-एकल बिजली संयंत्र और ड्राइव तंत्र द्वारा संचालित कई कारें होती हैं. इससे निर्माण और रखरखाव पर कम खर्च आता है.

-पूरे रोपवे के लिए एक ऑपरेटर की जरूरत होती है जिससे श्रम लागत की अतिरिक्त बचत होती है.

-रोपवे और केबल बड़ी ढलानों और उतार-चढ़ाव के बड़े अंतर को संभाल सकते हैं. सड़क या रेल मार्ग के लिए सुरंगों की जरूरत होती है, जबकि रोपवे सीधे ऊपर और नीचे फोन लाइन में चलता है.

भारत के ये रोप वे खास

गिरनार रोपवेः गुजरात में 24 अक्टूबर 2020 को इस रोपवे की शुरुआत हुई, जिसके जरिए महज 7.5 मिनट में 2.3 किलोमीटर की दूरी तय होती है. यात्री गिरनार पर्वत के आसपास की हरी-भरी सुंदरता देखते हैं.

पहले गिरनार पर्वत की यात्रा का एकमात्र विकल्प 9000 सीढ़ियां चढ़ना होता था. इसमें 5 से 6 घंटे लगते थे, अब चंद मिनटों में यह दूरी तय कर लेते हैं.

गुवाहाटी पैसेंजर रोपवे असम: ब्रह्मपुत्र नदी के पार गुवाहाटी और उत्तरी गोवा घाटी को जोड़ने वाला गुवाहाटी पैसेंजर रोपवे 24 अगस्त 2020 को शुरू हुआ.

ब्रह्मपुत्र को पार करने वाला लगभग 2 किलोमीटर का यह रोपवे भारत का सबसे लंबा नदी पर रोपवे माना जाता है.

द्ववि केबल विद बैक रोपवे गंगटोक: सिक्किम का यह रोप वे 16 से 76 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जिससे 7 मिनट में 1 किलोमीटर की दूरी तय की जाती है.

गुलमर्ग गोंडोला केबल कार जम्मूः यह रोपवे 2730 मीटर ऊंचाई पर स्थित है और 2.5 किलोमीटर की दूरी तय करता है.

मंशापूर्ण करणी माता रोपवे उदयपुर: राजस्थान के इस रूप ऐसे लोगों को दूरी तय करने में 4 मिनट का समय लगता है.

एरियल रोपवे नैनीताल: उत्तराखंड में 2270 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस रोपवे से दूरी तय करने में 151.7 सेकंड का समय लगता है.

भविष्य के रोपवे प्रोजेक्ट्स

उत्तराखंड में 7 परियोजनाओं की पहचान की गई है. केदारनाथ और हेमकुंड साहिब रोपवे के लिए डीपीआर बन रही है. उत्तराखंड के केदारनाथ और हेमकुंड साहिब में हर साल हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं.

उनकी यात्रा को आसान बनाने के लिए रोपवे बनाने की तैयारी चल रही है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, महाराष्ट्र, जम्मू और कश्मीर की सरकारें भी इस पर काम कर रही है.

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