भिलाई /बिलासपुर (newst20) । पिता का साया शीतल छाया का अहसास देता है। हंसते खेलते पता ही नहीं चलता कि ये साया जब सर से उठेगा तो जीवन की सारी खुशियां एक झटके में ही बिखर जाएंगी। पिताजी की छठवीं पूण्य तिथि अतीत के एक-एक पल को फिर से जीने की ख्वाहिश करने लगी जो अब नामुमकिन है लेकिन उनके होने के अहसास को मैंने अपने से जुदा नहीं होने दिया। एक जीवट ज़िंदादिल इंसान और भाईचारे के साथ लोगों के बीच सादगी भरा जीवन उनकी अपनी मिल्कियत थी। साहित्य और खेल को समर्पित उनका सारा जीवन सूफ़ी जैसा रहा। साहित्य में कमलाकर और खेलों में हिदायत अली के नाम से उनको जानने और समझने वाले लोगों का अटूट प्यार उन्हें हमेशा उर्जावान बनाए रखता। इसलिए 70 साल होने पर भी खेल के मैदान में उनकी फूर्ती और मेराथन दौड़ में हिस्सा लेना नौजवानों में जोश भरने का काम करती थी । खेल के मैदान से जब उन्हें वक्त मिलता तो कलम और कागज से रिश्ता बना लेते। घंटों लिखा करते। न केवल लिखते बल्कि साहित्य संगोष्ठियों का आयोजन भी माह में एक बार नियमित तौर पर अपने निवास में कर लिया करते। शहर और आसपास के अंचलों से साहित्य प्रेमी संगोष्ठी में बहुत ही आत्मीय भाव से शामिल होते। उनके रचना संसार में बच्चों से लेकर इतिहास के वे सभी प्रसंगों की चर्चा होती जिनसे मानव मूल्यों की स्थापना होती है। इसलिए रचना कर्म विविधताओं से भरा था यथा – काठ का घोड़ा, कागज की नाव, बाल कविता भाग एक व दो, बाल नाटक, खंड काव्य – वीणा, कालजयी, कहीं से भी पढ़ लो, बोलते खंडहर, कबीर से कमलाकर, समर्थ राम, नर – नारी- नारीश्वर, भक्ति काव्य – किसन मोहे तारो, अन्य साहित्य – अर्जुन का मोहमर्दन, कमलाकर के कलमदान से, प्रणय काव्य कथा – पाली का मंदिर, कैकई का संताप, अंतिम अरदास (गद्य ), नाटक – आजादी का पहला दिन। कवि, लेखक, समालोचक एवं साहित्यकार हिदायत अली कमलाकर जी देश-भर के अनेक सामाजिक साहित्यिक मंचों पर सम्मानित हुए। आकाशवाणी केंद्रों से अनेक वार्ताएं प्रसारित होती रही। अविभाजित मध्यप्रदेश में उनकी सबसे चर्चित कृति खंडकाव्य ‘वीणा’ मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति भोपाल में पं हरिहर निवास द्विवेदी सम्मान से वर्ष 1998 में अलंकृत किया। अखिल भारतीय साहित्य संगम, उदयपुर राजस्थान में उन्हें काव्य कौस्तुभ की मानद सम्मानोपाधि से नवाजा। खेल जगत में कोई खेल नहीं था जिसमें बाजी ना मारी हो। शताधिक खेलों के प्रतिष्ठित पुरस्कारों से अलंकृत हुए। वर्ष 2008 में छत्तीसगढ़ शासन ने उन्हें खेल विभूति सम्मान से विभूषित किया। स्टेंड बाल खेल का अविष्कार भी खिलाड़ी हिदायत अली ने किया। खेल और साहित्य का यह अनोखा प्रवाह वन्दनीय है। यूं तो उनके जीवन में शिष्यों और दोस्तों की बड़ी तादाद थी। लेकिन हमारे चाचा जी यानी प्रोफेसर दर्शन सिंह बल और लक्ष्मी स्पोर्ट्स के संचालक शंकर राय साहब उनके परम मित्रों में भाई जैसा स्थान रखते थे। पिछले 07 मई 2021को बल चाचा जी का जाना हमारे सारे बल को खत्म कर गया। पिता जी के बाद बल चाचाजी का होना और उनका साया हमारी ताकत थी। दो दोस्तों का अनूठा प्रेम आज भी उनकी यादों के बीच हमारे परिवार में जीवंत है । अपने लगभग चालीस बरस के सेवाकाल में कमलाकर जी ने इंजीनियरिंग कालेज में हमेशा ध्वजारोहण कार्यक्रम का संचालन किया। प्रोटोकॉल के अनुसार ध्वज फहराने की प्रक्रिया का दायित्व वे ही किया करते थे, इसका गर्व हमारे पूरे परिवार को होता था।आखिरी वक्त में भी 15 अगस्त 2016 को उन्होंने ध्वजारोहण कर तिरंगे को सलाम किया। उन्होंने इंजीनियरिंग कालेज बिलासपुर में अपनी सरकारी सेवा के दौरान अनेक सामाजिक साहित्यिक सांस्कृतिक आयोजनों को संचालित किया। 2005 में सेवानिवृत्ति के बाद हमेशा ध्वजारोहण के मुख्य अतिथि रहते थे। ध्वजारोहण उनके जीवन का सबसे खास पर्व था। बहुत सी यादें हैं जब भी बिलासपुर प्रवास पर रहता हूं लगता है जैसे हर कोई उनका पता पूछ रहा है। बिलासपुर शहर उनके परिवार का अभिन्न हिस्सा रहा। शीतलता को तलाशती आंखें नम हैं। आप सबका स्नेह, सहयोग और आशीर्वाद हमारे परिवार पर बना रहे। शत् शत् नमन।
(स्व हिदायत अली के पुत्र डा शाहिद अली की कलम से )