भिलाई [न्यूज़ टी [20] रायपुर |
आयुक्त सह-संचालक आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान ;ज्त्ज्प्द्ध श्रीमती शम्मी आबिदी ने कहा कि वन अधिकार प्राप्त करने से कोई भी पात्र हितग्राही वंचित न रहे।
व्यक्तिगत एवं सामुदायिक वन अधिकारों की मान्यता हेतु अपनाई जा रही प्रकिया का पूर्ण पारदर्शिता एवं सतर्कता के साथ पालन किया जाए। श्रीमती आबिदी वन अधिकार अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के संबंध में जिलों के
मास्टर ट्रेनर्स के एक दिवसीय राज्य स्तरीय पुनश्चर्या (रिफ्रेशर) प्रशिक्षण का शुभारंभ सत्र को संबोधित कर रही थीं। एक दिवसीय प्रशिक्षण सत्र का आयोजन आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के सभाकक्ष में किया गया।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए श्रीमती आबिदी ने कहा कि मास्टर ट्रेनर्स इस प्रशिक्षण सत्र का पूरा लाभ लें, ताकि जिलों में मास्टर ट्रेनर्स द्वारा मैदानी स्तर के अमले तथा वन अधिकार से संबंधित प्राधिकारियों को प्रभावी रूप से
प्रशिक्षण दिया जा सके। ताकि जिलों में विशेषकर ग्राम सभा स्तर पर वन अधिकारों के बारे में पर्याप्त जागरूकता हो सके तथा अधिनियम के क्रियान्वयन करने में आ रही
व्यावहारिक कठिनाईयों का नियमानुसार समाधान हो सके। उन्होंने एसडीएलसी द्वारा ग्राम सभाओं को आवश्यक जानकारी, अभिलेख भी उपलब्ध कराने के संबंध में मास्टर ट्रेनर्स को जिलों में वन अधिकार प्राधिकारियों को प्रशिक्षण दिए जाने के निर्देश दिए।
कार्यशाला को वन विभाग से अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरूण पांडे, अपर संचालक, संजय गौड़, प्रखर जैन ने भी संबोधित किया। प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए विभाग में कार्यरत
यूएनडीपी के प्रशिक्षक मनोहर ने ग्राम सभा की प्रकृति एवं भूमिका, वन अधिकार अधिनियम-2006 के संबंध मंे जागरूकता, वन अधिकार समिति की भूमिका एवं व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रों के संबंध में मुद्दे एवं चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की।
अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर कंडिकावार विस्तार से चर्चा कर मास्टर ट्रेनर्स की शंकाओं का समाधान किया। यूएनडीपी के प्रशिक्षक विभोर देव ने सामुदायिक वन अधिकार एवं सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पर विस्तार से चर्चा करते हुए,
इस संबंध में आ रही कठिनाईयों को दूर करने के संबंध में सुझाव दिए। उन्होंने वन अधिकार की आनॅलाइन प्रविष्टियों के संबंध में जियोटैगिंग की प्रकिया एवं फॉर्म फिलिंग प्रक्रिया को भी विस्तार से समझाया।
यूएनडीपी के प्रशिक्षक राजेश कुमार द्वारा पीवीटीजी के पर्यावास अधिकारों के बार में कार्यशाला में चर्चा की गई। कार्यशाला मंे सुश्री रेणुका रात्रे द्वारा भी मान्य वन अधिकारों को राजस्व अभिलेखों में दर्ज किए जाने के संबंध में जानकारी दी गई।
उल्लेखनीय है कि अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के लिए वन अधिकार पत्र प्राप्त होने की पात्रता तिथि 13 दिसम्बर 2005 निर्धारित की गई है।
इस तिथि के पूर्व से वन भूमि पर जीवनयापन कर रहे हितग्राही वन अधिकार पत्र प्राप्त करने के लिए पात्र माने जाएंगे। इसी प्रकार सामुदायिक अधिकार विशेषकर सामुदायिक वन संसाधन अधिकार ग्राम सभाओं को दिए जाने का प्रावधान है।
उल्लेखनीय है कि विभिन्न वन अधिकारों की मान्यता छत्तीसगढ़ सरकार की प्राथमिकताओं में से है। वन अधिकार पत्र वितरण में छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी राज्यों में से एक है।
राज्य में 31 दिसंबर 2021 तक कुल 4 लाख 45 हजार 833 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र पात्र हितग्राहियों को वितरित किए जा चुके हैं। जिसके अंतर्गत कुल 3 लाख 63 हजार 593 हेक्टेयर भूमि वितरित की गई है।
अब तक 45 हजार 305 सामुदायिक वन अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं। इसके अंतर्गत कुल 19 लाख 35 हजार 643 हेक्टेयर भूमि वितरित की गई है। इसके साथ ही सामुदायिक वन संसाधन के 3 हजार 650 वन अधिकार पत्र भी ग्राम सभाओं को वितरित किए जा चुके हैं।
इसी प्रकार शहरी क्षेत्रों में स्थित वन भूमि पर वन अधिकार पत्र भी दिए जा रहे हैं। इस अवसर पर जिलों से मास्टर ट्रेनर्स के रूप में इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में आदिम जाति विकास विभाग के अधिकारियों के साथ-साथ राजस्व विभाग
एवं वन विभाग से मास्टर ट्रेनर्स के रूप में सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास, संयुक्त कलेक्टर, अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, तहसीलदार, सहायक वन संरक्षक, रेंजर, मंडल संयोजक एवं अन्य अधिकारी उपस्थित थे।