दुर्ग / राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर के मार्गदर्शन एवं राजेश श्रीवास्तव जिला न्यायाधीश /अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में राहुल शर्मा सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा विधिक जागरूकता शिविर के माध्यम से बताया गया ।
कि पिछले कुछ सालों में चिटफंड कंपनियों से जुड़े कई मामले सामने आए हैं। लोग जल्द पैसा दो- तीन गुना करने के चक्कर में इन कंपनियों में निवेश करते हैं, लेकिन इसके बाद कंपनियां फरार हो जाती हैं। ऐसे कई कंपनियों के दफ्तर बंद हो गए। डायरेक्टर लापता हो गए।
चिट फंड एक्ट-1982 के मुताबिक चिट फंड स्कीम का मतलब होता है कि कोई शख्स या लोगों का समूह एक साथ समझौता करे। इस समझौते में एक निश्चित रकम या कोई चीज एक तय वक्त पर किश्तों में जमा की जाए और तय वक्त पर उसकी नीलामी की जाए। जो फायदा हो बाकी लोगों में बांट दिया जाए ।
इसमें बोली लगाने वाले शख्स को पैसे लौटाने भी होते हैं। नियम के मुताबिक ये स्कीम किसी संस्था या फिर व्यक्ति के जरिए आपसी संबंधियों या फिर दोस्तों के बीच चलाया जा सकता है लेकिन अब चिट फंड के स्थान पर सामूहिक सार्वजनिक जमा या सामूहिक निवेश योजनाएं चलाई जा रही हैं।
ये बरतें सावधानियां – निवेश से पहले किसी भी चिटफंड कंपनी के बारे में पूरा पता करें। सरकार ने चिटफंड के बारे में कुछ गाइडलाइन दे रखी उस पर जरूर नजर रखें। जब कभी आपको किसी चिट फण्ड कंपनी में पैसा लगाना हो तो सबसे पहले यह जांच करें कि जिस राज्य में वह कंपनी है क्या वह कंपनी उस राज्य के रजिस्ट्रार के पास रजिस्टर्ड है।
या नहीं, सेबी ने चेतावनी जारी कर कहा था। कि वह न किसी स्कीम या शेयर में निवेश की सलाह देता है और न ही किसी स्कीम लेने की सिफारिश करता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और बीमा नियमन एवं विकास प्राधिकरण भी निवेशकों के लिए चेतावनी जारी करती रही है।
चिट फंड कंपनियां इस काम को मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) में तब्दील कर देती हैं। मल्टी लेवल मार्केटिंग में कंपनियां मोटे मुनाफे का लालच देकर लोगों से उनकी जमा पूंजी जमा करवाती हैं। साथ ही और लोगों को भी लाने के लिए कहती हैं । बाजार में फैले उनके एजेंट साल, महीने या फिर दिनों में जमा पैसे पर दोगुने या तिगुने मुनाफे का लालच देते हैं।
कम समय में अमीर बनने की चाहत में लोग अपनी कमाई को चिट फंड कंपनियों और एजेंटों के हवाले कर देते हैं । चिट फंड कई साल से छोटे कारोबारों और गरीब लोगों के लिए पैसा लगाने का बड़ा स्रोत रहा है । भारत में चिट फंड का नियमन चिट फंड कानून 1982 के द्वारा होता है।
इस कानून के तहत चिट फंड कारोबार का पंजीयन व नियमन संबद्ध राज्य सरकारें ही कर सकती हैं। चिट फंड एक्ट 1982 के धारा 61 के तहत चिट रजिस्ट्रार की नियुक्ति सरकार के द्वारा की जाती है। चिट फंड के मामलों में कार्रवाई और न्याय निर्धारण का अधिकार रजिस्ट्रार और राज्य सरकार का ही होता है।
2009 में सत्यम कंप्यूटर घोटाला तो 2013 में शारदा घोटाला सामने आया। ये घोटाले करोड़ों नहीं, वरन हजार करोड़ रूपए तक के थे। शारदा घोटाले में तो 34 गुना तक फायदा निवेशकों को देने की लालच दिया गया था। इस समूह के द्वारा अनेक राज्यों के लगभग तीन सैकड़ा शहरों में अपनी शाखाएं खोलीं थीं।
इसी तरह का एक घोटाला रोजवैली के नाम पर भी सामने आ चुका है । ऐसे में लोगों को जागरूक होने की बहुत आवश्यकता है कि वह अपने पूंजी बिना जांच पड़ताल के किसी भी चिटफंड कंपनियों में निवेश ना करे ।